माइक्रोप्लास्टिक के टुकड़े या तो खा रहा है या फिर सांसों के जरिए अपने शरीर में उड़ेल रहा है
महानगर संवाददाता
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बीते दिनों हुई कई रिसर्चों से पता चला है कि किस तरह माइक्रोप्लास्टिक इंसान की खाद्य श्रृंखला में घुस सकता है. यहां तक कि पिछले साल कई मशहूर ब्रांड के सीलबंद बोतलों में बिकने वाले पानी में भी प्लास्टिक के टुकड़े मिले. हाल में कनाडा के वैज्ञानिकों ने रिसर्च के दौरान माइक्रोप्लास्टिक की मौजूदगी के बारे में सैकड़ों आंकड़ों के विश्लेषण किया और फिर उन्हें अमेरिकी लोगों की खाने पीने की आदतों से तुलना की.
इसके आधार पर उन्होंने पता लगाया है कि एक वयस्क इंसान एक साल में माइक्रोप्लास्टिक के करीब 52,000 टुकड़े अपने शरीर में डाल सकता है. उदाहरण के लिए जिस तरह की प्रदूषित हवा में हम जी रहे हैं उसमें केवल सांस के जरिए ही 1.21 लाख माइक्रोप्लास्टिक के कण शरीर में जा सकते हैं यानि कि हर दिन करीब 320 प्लास्टिक के टुकड़े. इसके अलावा अगर कोई इंसान सिर्फ बोतलबंद पानी पीता है तो एक साल में उसके शरीर में करीब 90,000 प्लास्टिक के टुकड़े जा सकते हैं. इस रिसर्च के बारे में रिपोर्ट इंवायरनमेंटल साइंस एंड टेक्नोलॉजी जर्नल में छपी है.
रिपोर्ट के लेखकों ने इस ओर भी ध्यान दिलाया है कि ये आंकड़े अनुमान हैं. वैज्ञानिकों का कहना है कि किसी इंसान के शरीर में प्लास्टिक के कितने कण जाएंगे यह इस बात पर निर्भर करेगा कि वह कहां रहता है और क्या खाता है. उनका यह भी कहना है कि इंसान के शरीर पर माइक्रोप्लास्टिक का क्या असर होता है यह अभी ठीक से समझा नहीं गया है. हालांकि वैज्ञानिकों के मुताबिक "130 माइक्रोमीटर से छोटे प्लास्टिक के कण में यह क्षमता है कि वो मानव उत्तकों को स्थानांतरित कर दें और फिर शरीर के उस हिस्से की प्रतिरक्षा तंत्र को प्रभावित करें.
एलेस्टेयर ग्रांट यूनिवर्सिटी ऑफ ईस्ट एंगलिया में इकोलॉजी के प्रोफेसर हैं. उनका कहना है कि रिसर्च में जिन प्लास्टिक कणों की पहचान कि गई है उनसे "इंसान के स्वास्थ्य को बहुत खतरा होने" की बात अब तक सामने नहीं आई है. ग्रांट इस रिसर्च में शामिल नहीं थे. हालांकि उनका कहना है सांस के जरिए शरीर में जाने वाली प्लास्टिक का एक बहुत छोटा हिस्सा ही वास्तव में फेफड़ों तक पहुंचता है.रिसर्चरों का कहना है कि कितना माइक्रोप्लास्टिक हमारे फेफड़ों और पेट में जाता है और उससे क्या खतरा हो सकता है इसे ठीक से समझने के लिए अभी और रिसर्च की जरूरत होगी. वैज्ञानिकों का यह भी कहना है कि माइक्रोप्लास्टिक को इंसान के शरीर में पहुंचने से रोकने का सबसे कारगर तरीका यही होगा कि प्लास्टिक का निर्माण और उपयोग घटाया जाए.
बोतलबंद पानी अनुमान से कई सौ गुना ज्यादा बुरा
बाजार में मिलने वाली पानी की बोतल जितना बुरा समझा जाता था, उससे वह सैकड़ों गुना ज्यादा बुरा है. एक अध्ययन में वैज्ञानिकों ने पाया है कि उसमें प्लास्टिक के छोटे-छोटे लाखों कण होते हैं. सोमवार को ‘प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल अकैडमी ऑफ साइंसेज' में प्रकाशित इस शोध के लिए वैज्ञानिकों ने नई तकनीक का इस्तेमाल किया. हाल ही में ईजाद की गई इस तकनीक के जरिए वैज्ञानिकों ने प्लास्टिक की बोतल में आने वाले पानी में प्लास्टिक के कणों की गिनती की. उन्होंने पाया कि एक लीटर पानी में औसतन 2,40,000 कण मौजूद थे. वैज्ञानिकों ने अलग-अलग कंपनियों के पानी की जांच के बाद कहा है कि प्लास्टिक के कणों की यह संख्या पहले के अनुमानों से कहीं ज्यादा है और बड़ी चिंता की बात है.
पूरी दुनिया में बढ़ रही है चिंता
हाल के सालों में खाद्य पदार्थों में माइक्रोप्लास्टिक की मौजूदगी को लेकर पूरी दुनिया में चिंता बढ़ी है. प्लास्टिक के ये कण नदियों और महासागरों से लेकर ऊंची चोटियों की बर्फ तक में मिल रहे हैं. इसी तरह ये पीने के पानी और खाने में भी पहुंच रहे हैं. 5 मिलीमीटर से छोटे टुकड़े को माइक्रोप्लास्टिक कहा जाता है जबकि नैनोप्लास्टिक एक माइक्रोमीटर यानी एक मीटर के अरबवें हिंस्से को कहा जाता है. ये कण इतने छोटे होते हैं कि इंसान के पाचन तंत्र और फेफड़ों में प्रवेश कर सकते हैं. वहां से ये खून में मिलकर पूरे शरीर में पहुंच सकते हैं और मस्तिष्क व हृदय समेत सभी अंगों को प्रभावित कर सकते हैं. ये प्लेसेंटा से होते हुए अजन्मे बच्चे के शरीर में भी पहुंच सकते हैं.
नई तकनीक का इस्तेमाल
बोतलबंद पानी के अध्ययन के लिए वैज्ञानिकों ने जिस नई तकनीक का इस्तेमाल किया, उसे स्टीमुलेटेड रैमन स्कैटरिंग (एसआरएस) माइक्रोस्कोपी कहा जाता है. इस तकनीक को हाल ही में इसी शोध में शामिल एक वैज्ञानिक ने खोजा था. इस तकनीक के तहत जांच के नमूनों को दो लेजर के नीचे परखा जाता है ताकि समझा जा सके कि वे मॉलीक्यूल किस चीज के बने हैं.
वैज्ञानिकों ने तीन बड़ी कंपनियों का पानी जांचा है, लेकिन उनका नाम नहीं बताया है. यान कहते हैं, "हमारा मानना है कि हर बोतलबंद पानी में नैनोप्लास्टिक होता है, इसलिए सिर्फ इन लोकप्रिय कंपनियों का नाम बताना उचित नहीं होगा.”
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