जयपुर की गणगौर का अमर इतिहास
महानगर संवाददाता
भारत त्योहारों की भूमि है। भारत में प्रत्येक दिन किसी ना किसी धर्म, सुमुदाय या व्यक्ति विशेष से जुड़े पर्व मनाए जाते हैं। इन पर्वों का उद्देश्य समाज में एकता और खुशियों का संचार करना है। भारतीय हिन्दू धर्म में कई व्रत एवं उपवास किए जाते हैं जो भगवान के प्रति गहरी आस्था और भक्ति का प्रतिक होते हैं। भारत के इन्हीं व्रत एवं त्योहारों में से एक है गणगौर पर्व। गणगौर राजस्थान के लोगों का सबसे लोकप्रिय, रंगीन और महत्वपूर्ण त्योहार है और यह पूरे राज्य में महिलाओं के उत्साह और भक्ति के साथ मनाया जाता है। यह त्योहार मानसून, फसल और महिलाओं की निष्ठा का उत्सव है। इस उत्सव में महिलाएं भगवान शिव की पत्नी गौरी की पूजा करती हैं।
गणगौर पूजन में मुख्यता 5 प्रतिमाये बनाई जाती है
गणगौर राजस्थान, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के निमाड़[, मालवा, बुंदेलखण्ड और ब्रज क्षेत्रों का एक त्यौहार है जो चैत्र महीने की शुक्ल पक्ष की तृतीया (तीज) को आता है। इस दिन कुँवारी लड़कियाँ एवं विवाहित महिलाएँ शिवजी (इसर जी) और पार्वती जी (गौरी) की पूजा करती हैं। पूजा करते हुए दूब से पानी के छींटे देते हुए "गोर गोर गोमती" गीत गाती हैं। इस दिन पूजन के समय गौर पर महावर, सिन्दूर और चूड़ी चढ़ाने का विशेष प्रावधान है। चन्दन, अक्षत, धूपबत्ती, दीप, नैवेद्य से पूजन करके भोग लगाया जाता है। गणगौर पूजन में मुख्यता 5 प्रतिमाये बनाई जाती है, गौर की मूर्ति, ईसर (शिव), कनीराम, रोवा बाई, सोवा बाई (कनीराम, रोवा बाई और सोवा बाई ईसरजी के भाई-बहन हैं), और छोटा भाया, जिसको बाल कृष्णा का रूप माना जाता है।
गौर गौर गोमती
गौर गौर गोमती ईसर पूजे पार्वती
पार्वती का आला-गीला , गौर का सोना का टीका
टीका दे , टमका दे , बाला रानी बरत करयो
करता करता आस आयो वास आयो
खेरे खांडे लाडू आयो , लाडू ले बीरा ने दियो
बीरो ले मने पाल दी , पाल को मै बरत करयो
सन मन सोला , सात कचौला , ईशर गौरा दोन्यू जोड़ा
जोड़ ज्वारा , गेंहू ग्यारा , राण्या पूजे राज ने , म्हे पूजा सुहाग ने
राण्या को राज बढ़तो जाए , म्हाको सुहाग बढ़तो जाय ,
कीड़ी- कीड़ी , कीड़ी ले , कीड़ी थारी जात है , जात है गुजरात है ,
गुजरात्यां को पाणी , दे दे थाम्बा ताणी
ताणी में सिंघोड़ा , बाड़ी में भिजोड़ा
म्हारो भाई एम्ल्यो खेमल्यो , सेमल्यो सिंघाड़ा ल्यो
लाडू ल्यो , पेड़ा ल्यो सेव ल्यो सिघाड़ा ल्यो
झर झरती जलेबी ल्यो , हर-हरी दूब ल्यो गणगौर पूज ल्यो
इस तरह सोलह बार बोल कर आखिरी में बोलें : एक-लो , दो-लो ……..सोलह-लो।
16 दिनों तक चलने वाला त्योहार है -गणगौर
गण (शिव) तथा गौर (पार्वती) के इस पर्व में कुँवारी लड़कियाँ मनपसन्द वर पाने की कामना करती हैं। विवाहित महिलायें चैत्र शुक्ल तृतीया को गणगौर पूजन तथा व्रत कर अपने पति की दीर्घायु की कामना करती हैं।होलिका दहन के दूसरे दिन चैत्र कृष्ण प्रतिपदा से चैत्र शुक्ल तृतीया तक, 16 दिनों तक चलने वाला त्योहार है -गणगौर। यह माना जाता है कि माता गवरजा होली के दूसरे दिन अपने पीहर आती हैं तथा सोलह दिनों के बाद ईसर (भगवान शिव) उन्हें फिर लेने के लिए आते हैं, चैत्र शुक्ल तृतीया को उनकी विदाई होती है।
263 साल से गणगौर की जयपुर में अकेले ही पूजा
अगर बात करे राजस्थान जयपुर की तो यहाँ की परम्पराये भी बहुत समृद्ध है, यहाँ की सभी परम्पराओ के पीछे भी कोई न कोई कारण व किस्से कहानिया है, वैसे तो गणगौर (माता पार्वती) की पूजा में ईसरजी (शिवजी) के साथ संयुक्त रूप से साथ होती है। लेकिन जयपुर एक ऐसा अनूठा स्थान है। जहां पिछले 263 सालों से गणगौर माता अपने पीहर जयपुर में अकेली पूजी जा रही है। इस दौरान गणगौर की सवारी भी जयपुर में अकेले ही निकाली जाती है। इसके पीछे का इतिहास है। रूपनगढ़ के महाराजा सावत सिंह के समय वहां के महंत ने किशनगढ़ में सवारी निकालने के लिए ईसर-गणगौर नहीं दिए। इस पर किशनगढ़ के महाराजा बहादुर सिंह जयपुर से ईसरजी को अकेले लूट कर ले आए। तब से जयपुर में अकेले ही गणगौर की पूजा का रिवाज है। जबकि जयपुर के अलावा अन्य रियासतों में गणगौर के साथ ईसरजी की सवारी निकलती हैं। बाद में किशनगढ़ में भी ईसरजी के साथ गणगौर की स्थापना की गई। जिसके बाद से वहां भी दोनों की सवारी साथ निकाली जाती है।
संपन्नता के लिए लूटते थे ईसरजी को
ईसरजी को लूटने के पीछे भी एक मजेदार इतिहास है। पूर्व राजघरानों ने इस ईसरजी को लूटने के पीछे जो तर्क दिया है। उससे आप चौक जायेंगे। किशनगढ़ राजघराना के पूर्व महाराजा ब्रजराज सिंह का कहना है कि रियासत काल में राजपूत गणगौर ईसरजी को संपन्नता बढ़ाने के लिए लूट कर ले जाते थे। ईसरजी लूट जाने के बाद जयपुर के महाराजा ईश्वर सिंह किशनगढ़ में अपना भेष बदलकर सवारी देखने पहुंचे। इस दौरान किशनगढ़ के महाराजा बहादुर सिंह को गुप्तचोरों ने इसकी सूचना दी। फिर महाराजा बहादुर सिंह ने महाराजा ईश्वर सिंह को सम्मान के साथ उन्हें सवारी दिखाई। निमाड़ में गणगौर का पवित्र त्योहार बड़े ही धूम धाम से मनाया जाता है त्योहार के अंतिम दिन प्रत्येक गांव में भंडारे का आयोजन होता है तथा माता की विदाई की जाती है गणगौर पूजन में कन्याएँ और महिलाएँ अपने लिए अखण्ड सौभाग्य, अपने पीहर और ससुराल की समृद्धि तथा गणगौर से प्रतिवर्ष फिर से आने का आग्रह करती हैं। साभार- डॉ. नमिता सोनी (सहायक आचर्य)
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